


गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि यह आत्मा के गूढ़ अंधकार से निकलकर ज्ञान के आलोक की ओर यात्रा का प्रतीक है। यह पर्व हर उस व्यक्ति को समर्पित है, जो हमारे जीवन में 'गुरु' रूप में प्रकाश देता है। 2025 में गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई (गुरुवार) को मनाई जाएगी, जो विशेष रूप से गुरु-शिष्य परंपरा और आत्मिक उन्नति का स्मरण कराती है।
गुरु की परिभाषा: अंधकार से प्रकाश तक
संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है –
‘गु’ = अंधकार (अज्ञान), ‘रु’ = प्रकाश (ज्ञान)
इस प्रकार गुरु वह होता है जो अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान का दीप प्रज्वलित करता है। गुरु केवल पाठ्य पुस्तकों का शिक्षक नहीं होता; वह आत्मा का चिकित्सक, अंतःकरण का दिशा-दर्शक होता है।
पौराणिक आधार: व्यास से शिव तक
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का विभाजन किया, पुराणों की रचना की और महाभारत जैसा महाकाव्य दिया। योग परंपरा में, इस दिन भगवान शिव ने सप्तर्षियों को योग की शिक्षा दी, इसीलिए उन्हें ‘आदि गुरु’ माना जाता है।
गुरु का स्थान: ब्रह्म से भी श्रेष्ठ
शास्त्रों में गुरु को ईश्वर से भी ऊपर स्थान दिया गया है:
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:॥”
गुरु हमारे कर्मों का बंधन काटते हैं, आत्मा का मार्ग प्रशस्त करते हैं और हमें उस स्थिति तक पहुंचाते हैं जहाँ 'मैं' समाप्त होता है और 'वह' प्रारंभ होता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 का विशेष संदेश
गुरु पूर्णिमा 2025 ऐसे समय में आ रही है जब दुनिया तकनीकी प्रगति के शिखर पर है, परंतु आंतरिक शांति और संतुलन की गहरी कमी महसूस हो रही है। यह पर्व हमें पुनः याद दिलाता है कि जीवन में मार्गदर्शन, अनुशासन और आत्मसाक्षात्कार की आवश्यकता है। यह समय है अपने भीतर के गुरु को भी सुनने का।
आयोजन और परंपराएं
भारत सहित नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका और अन्य देशों में भी यह पर्व भव्यता से मनाया जाता है। आश्रमों में विशेष पूजन, प्रवचन, ध्यान-सत्र, साधना और गुरु पूजा होती है। शिष्य अपने गुरु के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं, गुरु वाक्य का श्रवण करते हैं और आत्मिक साधना का संकल्प लेते हैं।
गुरु–शिष्य संबंध: चेतना का जीवंत प्रवाह
गुरु और शिष्य का संबंध केवल शारीरिक नहीं, यह चित्त और चेतना का मिलन है। श्रीराम के वशिष्ठ, श्रीकृष्ण के सांदीपनि, अर्जुन के श्रीकृष्ण, और विवेकानंद के रामकृष्ण परमहंस—इन सभी युगल संबंधों ने इतिहास को बदला है। जब शिष्य पूर्ण समर्पण करता है, तब गुरु उसमें ब्रह्मज्ञान का संचार करता है।
अपने अंतःगुरु को पहचानिए
गुरु पूर्णिमा 2025 हमें केवल बाहरी गुरु की वंदना का अवसर नहीं देती, बल्कि यह अपने अंतर्मन में छिपे ‘अंतःगुरु’ की आवाज़ सुनने की प्रेरणा देती है। जो बाहर है, वह भीतर भी है। जब शिष्य भीतर मौन होता है, तब गुरु भीतर से बोलता है। यही आत्मबोध है, यही प्रकाश का पथ है।